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विकीलिक्स की ओर से एक के बाद  एक खोजपरक खबरों और राडिया-मीडिया प्रकरण ने ये साबित कर दिया कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ नाम से लेबल चस्पा कर जो पत्रकारिता अब तक की जाती रही है वो दरअसल प्रेस रिलीज और जनसंपर्क का व्यावहारिक रुप है। पत्रकारिता के इस रुप से लोकतंत्र की जड़ें न केवल खोखली हुई है बल्कि इससे इसके विरोधियों की ताकत में लगातार इजाफा हुआ है। एक धंधे के रुप में मीडिया ने कार्पोरेट,दलाली और भ्रष्टाचार की नींव को मजबूती देने का काम किया है। न्यूज चैनलों ने मीडिया के इस रुप पर जहां लगभग चुप्पी मार ली वहीं अखबारों ने इसे बहुत बाद में छापकर अपनी साख  बचाने की कोशिश की। कथादेश मीडिया वार्षिकी, अप्रैल अंक इन तमाम घटनाओं और कुचक्रों को बारीकी से रेखांकित करता है। बतौर लेखक अधिकांश नए चेहरों की तल्खी से मौजूदगी ने मीडिया आलोचना की संभावना को विस्तार देने का काम किया है। कल यानी 7 अप्रैल को इस अंक का लोकार्पण और इसके बाद इनमें शामिल प्रसंगों पर खुली बहस का आयोजन है। अगर आप दिल्ली में है,व्यस्त होते हुए भी इस बहस की धार को मजबूती देना जरुरी समझते हैं तो शाम पांच बजे जेएनयू में जुटिए। हम जैसे लोग तो वहां  पहले से मौजूद मिलेंगे ही।
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संगोष्ठी : विकिलीक्‍स के दौर में मीडिया - संभावनाएं और चुनौतियां
वक्ता प्रो. आनंद कुमार, वरिष्‍ठ समाजशास्त्री, JNU
प्रो. श्यौराज सिंह बेचैन, चिंतक व लेखक, DU
... उदय प्रकाश, वरिष्‍ठ साहित्यकार
डा. आनंद प्रधान, मीडिया विशेषज्ञ, IIMC
सिरिल गुप्‍त, संस्‍थापक- 'ब्‍लॉगवाणी'
उपस्थिति
हरिनारायण, संपादक- कथादेश
दिलीप मंडल, अतिथि संपादक (मीडिया विशेषांक-कथादेश)
अविनाश, अतिथि संपादक (मीडिया विशेषांक-कथादेश) Mohallalive.com
समय- शाम 5 बजे
दिनांक- 7 अप्रैल, 2011
स्थान- 212, कमेटी रूम, स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज, जेएनयू
आप सादर आमंत्रित हैं.


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