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र्चपुर, हरियाणा में एक बार फिर अगड़ी जाति के दबंगों ने दो दलित महिलाओं के साथ बलात्कार करने की कोशिश की है। अगड़ी जाति के दबंगों ने खेत में काम करते वक्त सरेआम उनसे बलात्‍कार करने का हर संभव प्रयास किया और नाकाम रहने पर उन पर ट्रैक्टर चढ़ा दिया।  इन्हें रोहतक अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन अब वो सामान्य स्थिति में नहीं हैं। मानसिक तौर पर उनकी क्या हालत हुई होगी, इसका सहज अंदाजा हम लगा सकते हैं। 13 अप्रैल को हुई इस घटना के तीन दिन बाद तक भी एफआइर दर्ज नहीं की गयी और अब इसे बलात्कार के बजाय हत्या की कोशिश का केस बताया जा रहा है।  मिर्चपुर में ये कोई पहली घटना नहीं है कि दलित महिलाओं और लड़कियों की इज्जत के साथ खेलने का काम किया गया, ये वहां की दबंग जातियों की रूटीन का हिस्सा है बल्कि उनकी भाषा में कहें तो एक परंपरा सी बनी हुई है कि अगड़ी जाति में पैदा होने की तमाम सुविधाओं के साथ एक सुविधा ये भी है कि वो दलित घर की बहू-बेटियों के साथ मनमर्जी कर सकें।

पिछले साल 21 अप्रैल को 72 वर्षीय ताराचंद को इसलिए जला दिया गया क्योंकि उन्होंने अपनी विकलांग बेटी के साथ की जानेवाली जबरदस्ती का विरोध किया था। उसे जिंदा जलाने के दौरान बचाने आये थे। सुमन को तो कमरा बंद करके जिंदा जला ही दिया गया, साथ में ताराचंद को भी उन वहशियों ने नहीं छोड़ा। 9 मई 2010 को जब दिल्ली से हम कुछ लोगों ने उस इलाके का दौरा किया तो कई ऐसे सच हमारे सामने खुलकर आये जिसे कि मेनस्ट्रीम मीडिया (समचार चैनल और अखबार दोनों) ने कभी दिखाने-बताने की जरूरत महसूस नहीं की। दोपहर में जब हम मिर्चपुर पहुंचे, तो दलितों की वो बस्ती पूरी तरह वीरान थी। चारों तरफ पुलिस बल तैनात थे। वो हमें बहुत ही कठोरता के साथ निहार रहे थे लेकिन हमने जले हुए करीब सात घरों में भीतर तक जाकर देखा कि कैसे दबंग अगड़ी जातियों ने दलित परिवारों को अपनी मनमानी का शिकार बनाया है। हम तब पूरी तरह खाक हो चुके सुमन के घर के सामने एक तख्ती पर बैठे थे। साथ में उसका भाई, उसकी मां जिनकी आंखें पूरी तरह सूज गयी थीं और उसकी दीदी भी थी। करीब चालीस मिनट की बातचीत में हम उसकी दीदी से नजर नहीं मिला पा रहे थे। सुमन की मां रो रही थी, फिर भी उनकी तरफ देख ले रहे थे लेकिन उसकी दीदी बिना रोये हमारी बातों को आगे बढ़ा रही थी लेकिन हमारी हिम्मत नहीं हुई कि हम आंख मिलाकर बात कर सकें। लौटते वक्त हमने एक बार जरूर भर नजर देखने की कोशिश की थी और वो चेहरा अभी तक मेरे दिमाग में कैद है – सपाट, संवेदनाएं एक जगह खून के थक्के-सी जमी हुई। उसी दौरान बस्ती के कुछ और लोग जमा हो गये और उनमें शामिल एक बुजुर्ग ने जो हमें बताया, वो हमें पूरी तरह हिला देनेवाला था।
मिर्चपुर की अगड़ी जातियां, यहां की दलित बहू-बेटियों पर अपना अधिकार समझते हैं। वो कई बार जबरदस्ती दलितों के घरों में शाम के वक्त घुस आते हैं, भीतर से दरवाजे बंद कर लेते हैं और पूरी रात वहीं रुक जाते हैं। इस बीच वो शराब पीते हैं, हमलोगों को लेकर अंट-शंट बकते हैं, जमकर गालियां देते हैं और जो मन आये, करते हैं। विरोध करने पर कई बार तो वो बहू-बेटियों को नंगा करके बस्ती में घुमाते हैं। ये सब सुनना हमारे लिए जितना असहज है, उनके लिए करना उतना ही सहज। उस बुजुर्ग की बात के साथ जब एक महिला ने ये भी जोड़ा कि जिस दिन सुमन को कमरे में बंद करके जिंदा जलाया जा रहा था, उस दिन भी वो लोग घर के बाहर बैठकर शराब पी रहे थे और गालियां दे रहे थे। अगड़ी जातियों का रौब इसी बात को लेकर है कि वो इस परंपरा को किस तरह और कितने लंबे समय तक बनाये रखते हैं। शायद यही कारण है कि जब-जब हरियाणा में ऐसी घटनाएं होती हैं और दबे-सहमे तरीके से ही सही लोग (इन मामलों में एनजीओ की भी बहुत सक्रियता दिखायी नहीं देती) सड़कों पर उतरते हैं, तो उससे कई गुणा ताकतवर और विकराल समुदाय उनके इस प्रतिरोध को तहस-नहस करने में सक्रिय हो जाते हैं। वो पीड़ित, दलित बस्ती के लोगों और उनके समर्थन में आये लोगों को या तो डराने-धमाने की पुरजोर कोशिशें करते हैं या फिर छोटे-मोटे प्रलोभन के साथ मामले को रफा-दफा करने की कोशिश करते हैं। ये समुदाय इतनी मजबूती से अपनी मौजूदगी दर्ज करता है कि सरकार को भी इस बात का भय सताने लग जाता है कि अगर इनके विरोध में कदम उठाये गये तो इसका नकारात्मक प्रभाव राजनीतिक करियर पर साफ तौर पर पड़ सकता है।
वहां मौजूद मीडिया भी इनके खिलाफ बहुत अधिक लिख-बोल नहीं सकता, क्योंकि जिस तरह से हमें पहले तो सम्मान देकर और बाद में ये जानने पर कि दिल्ली से आये हैं, घेरकर सवाल-जवाब करने और हड़काने का काम किया गया, उससे अंदाजा लग गया कि यहां मीडिया और पत्रकार उनके पालतू बनकर अपने को बचा सकते हैं। स्थानीय मीडियाकर्मियों से वो जिस तरीके से बात कर रहे थे, उससे भी हमने भांप लिया था कि उनकी तरफ से इन्हें नियमित सेवाएं इस बात की दी जाती है कि वो कभी भी इनके खिलाफ कीबोर्ड और माइक का इस्तेमाल न करें।
ऐसे में 17 अप्रैल 2011 को दो दलित महिलाओं के साथ बलात्कार करने की कोशिश की जो खबर हमारे सामने आयी है, वो इस पूरी प्रक्रिया का एक नमूना भर ही है। मिर्चपुर और हरियाणा में इस तरह की घटनाएं सालोंभर होती रहती हैं, अगर ऐसा कहा जाए, तो शायद कुछ गलत न होगा। गूगल पर अखबार की कतरनों को खोजने की कोशिश में अभी भी जुटें, तो आपको निराशा होगी कि ये नदारद है। इसकी वजह साफ है, जिसका कि हमने ऊपर जिक्र किया। एक तो ये कि संवैधानिक रूप से ऐसा करना गलत माने जाने के बावजूद भी दबंग जातियों के भीतर ही भीतर इस बात की स्वीकृति है कि दलित जातियों के साथ ऐसा ही किया जाना चाहिए, वो इसी लायक हैं। उनकी हैसियत तब बौनी हो जाती है, जब वो ऐसा करना बंद कर देते हैं। तभी तो ऊपरी तौर पर सुमन के पक्ष में न्याय की बात करते हुए भी 9 मई को मिर्चपुर में जब पूरे हरियाणा की खापों को लेकर महापंचायत बुलायी गयी, तो किसी भी वक्ता ने खुलकर नहीं कहा कि जो हुआ वो गलत हुआ और भविष्य में ऐसा नहीं होगा। किसी ने ये नहीं कहा कि इसे अगड़ी जाति के लोगों ने अंजाम दिया जबकि सब कुछ बहुत साफ था और जो कुछ हुआ था, वो अगड़ी जातियों के भीतर ही भीतर स्वीकृत की जानेवाली परंपरा का हिस्सा था। सबों ने सुमन और ताराचंद के प्रति सहानुभूति जताने के बहाने अगड़ी जातियों के एकजुट होने के लिए खाप पंचायत बुलायी थी और उल्टे सरकार को अल्टीमेटम दिया था कि अगर उनके लड़के को रिहा नहीं किया गया, तो इसका अंजाम सही नहीं होगा। साझी संस्कृति का हवाला देकर मंच से इस बात को उन वक्ताओं ने भी दुहराया, जो कि कभी सरकारी नौकरियों में शामिल रहे थे, सेना में थे। मुझे हैरानी हो रही थी कि साझी संस्कृति को लेकर वो इस तरह बोल रहे थे कि जैसे दलितों ने ही इसे नष्ट या चोट पहुंचाने का काम किया है। उन सारे वक्ताओं का जो स्वर था, उससे बार-बार यही निकलकर आ रहा था कि इन दलितों ने हरियाणा की संस्कृति को कलंकित किया है, उन्हें इस तरह विरोध दर्ज करने के लिए हिसार के जिला मुख्यालय के आगे धरना-प्रदर्शन नहीं करना चाहिए था।
मिर्चपुर के पहले जब हम हिसार के इस जिला मुख्यालय के आगे पहुंचे थे, तो एक महिला पुलिसकर्मी ने बहुत ही स्वाभाविक तरीके से कहा कि वो लोग यहां से चले गये, अच्छा हुआ जी, हरियाणा की बड़ी बदनामी हो रही थी। बाद में हमें ये भी पता चला कि वहां से लोग चले नहीं गये थे, डरा-धमकाकर, मार-पीटकर भगा दिया गया था। तो सवाल है कि जिस मिर्चपुर और हरियाणा के अधिकांश इलाके में अगड़ी जातियों के दबंगों द्वारा दलित महिलाओं का बलात्कार करना या उन्हें जिंदा जला देना, उसके प्रतिरोध में उठ खड़े होने से ज्यादा स्वाभाविक है, वहां अगर इस तरह की घटनाएं लगातार घटित होती हैं लेकिन कभी-कभी मुख्यधारा के मीडिया की खबर बन पाती है, तो इसमें आश्चर्य कैसा?
अच्छा, अब इन घटनाओं की तारीखों पर एक बार नजर डालें तो आपको सहज ही अंदाजा लग जाएगा कि ये काम अगड़ी जातियों द्वारा सिर्फ और सिर्फ हवश को पूरी करने के लिए नहीं किये जाते, इसका एक राजनीतिक अर्थ भी है जिसे कि व्यापक तौर पर समझा जाना चाहिए। सुमन के साथ पिछले साल जो कुछ भी हुआ, वो भी अंबेडकर जयंती के एक सप्ताह भी नहीं बीते थे, तब किया गया और इस साल भी जिन दो दलित महिलाओं के साथ तब किया गया जबकि कुछ जगहों पर इस उपलक्ष्य में जो कार्यक्रम आयोजित किये गये, उनके शायद टेंट, बैनर-पोस्टर भी नहीं उतरे होंगे। इसका साफ मतलब है कि दलित समाज को किसी भी हाल में अंबेडकर को लेकर दर्प में भीगने का मौका न दिया जाए। बाबा साहब को लेकर जो उनके भीतर स्वाभिमान है, उनके आदर्शों को अपनाते हुए, एकजुट होकर कुछ करने और सुधार की योजना है, उसे ध्वस्त कर दिया जाए ताकि हरियाणा के भीतर वो कभी भी संगठित आवाज की शक्ल में न उभरने पाएं। ऐसे में इस तरह की घटना सिर्फ अपराधिक मामले के दायरे में नहीं आती बल्कि दलितों की जातीय अस्मिता को कुचलने के तौर पर आती है, जिसमें कि किसी एक-दो शख्स को दंडित करके दुरुस्त नहीं किया जा सकता। ये वो राजनीतिक कुचक्र का हिस्सा है, जिसमें सिर्फ सुमन और ताराचंद जैसे लोग शिकार नहीं हुए होंगे बल्कि पूरा दलित समाज चपेट में आ चुका है। और वैसे भी जब ये सब कुछ करना दबंग जातियों के लिए भीतर ही भीतर परंपरा को बनाये रखने का मामला करार दे दिया गया हो, राजनीतिक पार्टियों के लिए सत्ता का खेल गड़बड़ा जाने का भय हो और दलितों का प्रतिरोध, दबंगों के बलात्कार किये जाने से कहीं ज्यादा अस्वाभाविक हो तो दलितों के लिए अस्मिता के भरभरा जाने जैसे चीत्कार का संकट तो है ही। ऐसे में हम इन दो महिलाओं के साथ कुकर्म करने की मंशा रखनेवाले अपराधियों के पकड़े जाने के इंतजार से कहीं ज्यादा कॉलर ऊंची करके चलते हुए देखने के अभिशप्त हैं।
मूलतः प्रकाशित मोहल्लाlive
इस खबर की वीडियो देखने के लिए नीचे की दोनों लिंक चटकाएं। ndtv24x7 ने इसे जहां हत्या का मामला बताकर खबर की है वही उसके ही सिस्टर चैनल इंडिया टीवी ने बलात्कार करने में नाकाम रहने पर ट्रक से कुचल दिया की खबर प्रसारित की है। भाषा के बदल जाने से कैसे खबरें भी बदल जाती है और वो भी एक ही मीडिया संस्थान के भीतर,इसे समझना दिलचस्प होगा। बहरहाल,दोनों लिंक-
एनडीटीवी इंडिया-http://www.ndtv.com/video/player/news/video-story/196861
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1 Response to 'मिर्चपुर में अबकी बार ट्रैक्टर से कुचल दी गई दलित महिलाएं'
  1. अनूप शुक्ल
    http://taanabaana.blogspot.com/2011/04/blog-post_18.html?showComment=1303527917437#c8859210911966763995'> 23 अप्रैल 2011 को 8:35 am बजे

    सारा घटनाक्रम बहुत शर्मनाक और स्तब्ध कारी है।

     

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