.

दिल्ली गैंग रेप की घटना और दामिनी की मौत के बीच और अब तक टेलीविजन स्क्रीन पर स्त्री अधिकारों से लेकर दिल्ली पुलिस और सरकार पर अलग-अलग तरीके से बातें हुई. जिंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे लगते रहे और अब भी जारी है..लेकिन जिस लड़की को जाना था वो तो चली गई और इसी तरह जाती भी रहेगी. हां, इथना जरुर हुआ है कि हमेशा की तरह इस बार भी मेनस्ट्रीम मीडिया,समाचार चैनलों को अपनी दूकान की डेंटिं-पेंटिंग करने का फिर से मौका मिल गया है. लगभग हर मुद्दे पर बोलनेवाले कुछ चमकीले मर्द चेहरों और स्त्री जीवन को समझनेवाली( वाया अकादमिक/बॉलीवुड/पत्रकारिता) स्त्री विमर्शकारों की मौजूदगी से टीवी स्क्रीन एक बार फिर गुलजार हो उठा. समय-समय पर चैनल ने इसे कुछ घंटे के लिए जनाना डब्बे में तब्दील करने की भी कवायदें रची लेकिन प्रेस रिलीज की शक्ल में नगाड़े पीटने के बाद सब पहले की तरह हो गया.
एकबारगी तो लगा कि सारा मामला फांसी दो,नपुंसक कर दो जैसी अतिरेकी बहसों में उलझकर रह जाएगा लेकिन आगे हन्नी सिंह के गाने खासकर "मैं बलात्कारी हूं' के बहाने सांस्कृतिक संकट पर ललित निबंध लिखने-बांचने का भी काम शुरु हो गया. संभव है इस पर बात करनेवाले कुछ ज्यादा भारी संख्या में किराना दूकान टाइप विश्लेषक टीवी को नसीब हो जाएं लेकिन सवाल तो सवाल है जो फेसबुक के जरिए हम जैसे लोग उठाते रहेंगे. आप भी गुजरिए उन सवालों से और बताइए कि आपकी क्या राय है-

1. "मैं हूं बलत्कारी" हन्नी सिंह के इस गाने को लेकर माहौल गर्म है और जो टीवी चैनल कल तक जया बच्चन के आंसू को बॉलीवुड संवेदना का घोषणापत्र के रुप में प्रोजेक्ट कर रहे थे, अब सवाल कर रहे हैं क्या सिर्फ दिखावे के आंसू से काम चल जाएगा ? देखें तो इससे पहले हम दिक्कत होने पर लंपट को पिल्स खाने की सलाह देकर पल्ला झाड़ चुकनेवाले गाने चुपचाप पचा गए हैं. और इससे पहले भी डार्लिग के लिए बदनाम होनेवाली मुन्नी और शीला की जवानी को. जिगरमा बड़ी आग है पर न जाने कितने वर्दीधारियों ने नोटों की गड्डियां उड़ायी होंगी ? अब खबर है कि हन्नी सिंह पर एफआइआर दर्ज हो रहा है..कितना हास्यास्पद है न..सवाल हमारी अचर-कचर को लेकर बढ़ रही हमारी पाचन क्षमता पर होनी चाहिए तो ह्न्नी सिंह को प्रतीक प्रदूषक बनाकर मामला दर्ज हो रहा है..आप रोजमर्रा के उन सांस्कृतिक उत्पादों का क्या कर लेंगे जो पूरी ताकत को इस समाज को फोर प्ले प्रीमिसेज में बदलने पर आमादा है. आप उस मीडिया का क्या करेंगे जो बहुत ही बारीकी से छेड़खानी,बदसलूकी और यहां तक कि बलात्कार के लिए वर्कशॉप चला रहा है. हम प्रतीकों में जीनेवाले और गढ़नेवाले लोग क्या कभी उस चारे पर सवाल उठा सकेंगे जो दरअसल अपने आप में दैत्याकार अर्थशास्त्र रचता है.

2. एक हन्नी सिंह और एक मैं हूं बलत्कारी को लेकर कार्रवाई करके कौन सा तीर मार लेगा ये मीडिया जिसने कि दिल्ली के गैंगरेप मामले को जिस गति से दिखाया, उसी गति से ब्रेक में मिस्ड कॉल देकर लौंडिया पटाउंगा के चुलबुल पांडे को हीरो भी बनाया. चुलबुल पांडे की पूरी हरकत छेड़खानी और काफी हद तक बलात्कार के लिए उकसाने की वर्कशॉप है. आप जब तक देशभर में मीडिया के जरिए चल रहे ऐसे वर्कशॉप पर गंभीरता से बाद नहीं करते और मीडिया को उस मुहाने पर लाकर रगड़ाई नहीं करते कि तुम इस वर्कशॉप के भीतर से पैदा होनेवाले अर्थशास्त्र के बरक्स दूसरा अर्थशास्त्र पैदा करने का माद्दा रखते हो तब तक सांस्कृतिक संकट पर ललित निबंध और हेल्थ डिंक्रनुमा पैनल डिस्कशन चलते रहेंगे. कीजिए गिरफ्तार हन्नी सिंह को, कल को कई दूसरा कम्पोज करेगा..य य आइ एम भैन चो, यो यो यू आर मादर चो..

3. जिस देश में दो सौ रुपये के एक रुपा थर्मॉकॉट बेचने के लिए नेहा,स्नेहा जैसी कुल छह लड़कियों को स्वाहा करने की जरुरत पड़ जाती हो. 60-70 की चड्डी पहनते ही दर्जनों लड़कियां चूमने दौड़ पड़ती हो, सौ-सवा रुपये की डियो के लिए मर्दों के मनबहलाव के लिए आसमान से उतरने लग जाती हो. कंडोम के पैकेट हाथ में आते ही वो अपने को दुनिया की सबसे सुरक्षित और खुशनसीब लड़की/स्त्री समझने लग जाती हो..वहां आप कहते हैं कि हम मीडिया के जरिए आजादी लेकर रहेंगे. आप पलटकर कभी मीडिया से पूछ सकते हैं कि क्या उसने कभी किसी पीआर और प्रोमोशनल कंपनियों से पलटकर सवाल किया कि बिना लड़की को बददिमाग और देह दिखाए तुम मर्दों की चड्डी,डियो,थर्मॉकॉट नहीं बेच सकते ? हॉट का मतलब सिर्फ सेक्सी क्यों है,ड्यूरेबल का मतलब ज्यादा देकर टिकने(फ्लो नहीं होने देनेवाला) क्यों है और ये देश स्त्री-पुरुष-बच्चे बुजुर्ग की दुनिया न होकर सिर्फ फोर प्ले प्रीमिसेज क्यों है ? तुम अपना अर्थशास्त्र तो बदलो,देखो समाज भी तेजी से बदलने शुरु होंगे..

4. टेलीविजन के विज्ञापन और उनका कंटेंट दो अलग-अलग टापू नहीं है. इस पर बात करने से एडीटोरिअल के लोग भले ही पल्ला झाड़ ले और मार्केटिंग वालों की तरफ इशारा करके हम पर ठहाके लगाएं लेकिन दर्शक के लिए वो उसी तरह की टीवी सामग्री है जैसे उनकी तथाकथित सरोकारी पत्रकारिता. उस पर पड़नेवाला असर भी वैसा ही है..अलग-अलग नहीं. आप दो सरोकारी खबरे दिखाकर दस चुलबुल पांडे हीरो उतारेंगे तो असर किसका ज्यादा ये कोई भी आसानी से समझ सकता है. ऐसे में सवाल सरोकारी खबरों की संख्या गिनाकर नेताओं की तरह दलील पेश करने का नहीं है, सवाल है कि आप जिस सांस्कृति परिवेश को रच रहे हैं क्या उसे संवेदनशील समाज का नमूना कहा जा सकता है..क्या आपके हिसाब से स्त्री देह को रौंदने,छेड़ने,मजे लेने की सामग्री के बजाय एक अनुभूति और तरल मानवीय संबंधों की तरफ बढ़ने की खूबसूरत गुंजाईश भी है. अस्मिता और पहचान की इकाई भी है ? आप जो इसके जरिए फोर प्ले की वर्कशॉप चला रहे हैं, उससे अलग तरीके से भी समाज सोचता है ? ये कौन सा उत्तर-आधुनिक मानवीकरण है जहां गाड़ी से लेकर थर्मॉकॉट तक स्त्री देह होने का आभास कराते हैं और जिसके पीछे मर्द दिमाग पिल पड़ता है ? माफ कीजिएगा, इस सहजता के साथ अगर आप काम कर रहे होते तो आप खुद भी कटघरे में खड़े नजर नहीं आते ?


| edit post
12 Response to 'आप जो छेड़खानी,बलात्कार की वर्कशॉप चला रहे हो,उसका क्या ?'
  1. आर्यावर्त डेस्क
    http://taanabaana.blogspot.com/2013/01/blog-post.html?showComment=1357047141931#c3742192208672055731'> 1 जनवरी 2013 को 7:02 pm बजे

    हुंकार की कर्कश वाणी, खबरिया चैनल के लिए बहुत बेसुरा राग लगेगा,
    सटीक लेखन, जारी रहें।
    नव वर्ष मंगलमय हो।

    आर्यावर्त

     

  2. SAURABH ARYA
    http://taanabaana.blogspot.com/2013/01/blog-post.html?showComment=1357047624323#c2892649353656514959'> 1 जनवरी 2013 को 7:10 pm बजे

    पूरी तरह सहमत. आपने ठीक नब्‍ज़ टटोली है. ये बेहयाई का दौर है और बाजार हर चीज को बेचने की कूव्‍वत में है फिर वह स्‍त्री ही क्‍यों न हो. बाजार पहले विज्ञापन में औरत के इस्‍तेमाल का तर्कशास्‍त्र गढ़ता है, जिसका स्‍त्रोत वही पुराना पुरूष कुंठा का तुष्‍टीकरण है,फिर उस पर क्रिएटिविटी का मुल्‍लम्‍मा चढ़ाया जाता है....और 'हम भारत के लोग' सब चटखारे लेकर देखते रहते हैं. हम सब भी कहीं न कहीं जिम्‍मेदार हैं. इस वाहियाती पर कहीं से तो लगाम लगे.

     

  3. Alpana Verma
    http://taanabaana.blogspot.com/2013/01/blog-post.html?showComment=1357058795300#c8549378275139568279'> 1 जनवरी 2013 को 10:16 pm बजे

    हर बात बेबाक, सटीक और खरी -खरी कही है !

     

  4. Padm Singh
    http://taanabaana.blogspot.com/2013/01/blog-post.html?showComment=1357062033688#c1186212925197906771'> 1 जनवरी 2013 को 11:10 pm बजे

    धो डाला.... आईना दिखा दिया या हूँ कहें आईना मुँह पर ही दे मारा.... जो दूरबीन लिए दूसरों का छिद्रान्वेषण करने और मज़े लेने मे लगे हैं उनकी खुद की लंगोटी कितनी सुरक्शित है इस पर विचार करना ज़रूरी है

     

  5. Shilpa Mehta : शिल्पा मेहता
    http://taanabaana.blogspot.com/2013/01/blog-post.html?showComment=1357063274407#c3512293951984324859'> 1 जनवरी 2013 को 11:31 pm बजे

    100% sahmat hoon

     

  6. देवेन्द्र पाण्डेय
    http://taanabaana.blogspot.com/2013/01/blog-post.html?showComment=1357063909812#c8006736714070994855'> 1 जनवरी 2013 को 11:41 pm बजे

    ऐसे लेखों को पढ़कर समझा जा सकता है कि ब्लॉग का क्या महत्व है। मी़डिया की चरित्रहीन व्ववसायिकता को ब्लॉग जगत ही उजागर कर सकता है।..जोरदार आलेख के लिए आभार।

     

  7. परमजीत सिहँ बाली
    http://taanabaana.blogspot.com/2013/01/blog-post.html?showComment=1357066615071#c3514197063572274900'> 2 जनवरी 2013 को 12:26 am बजे

    बिल्कुल सही लिखा.. सहमत।

     

  8. Unknown
    http://taanabaana.blogspot.com/2013/01/blog-post.html?showComment=1357069497783#c8092288704954881306'> 2 जनवरी 2013 को 1:14 am बजे

    विनीत जी..... सच्चाई का जो आईना आपने मीडिया के समक्ष रखा है,वह वास्तव मे कलई खोलू है ।धन्यवाद के साथ अपना विचार भी आपके माध्यम से रखना चाहता हूँ..... यदि आप की इजाजत मिले तो...

     

  9. Imran Khan
    http://taanabaana.blogspot.com/2013/01/blog-post.html?showComment=1357083337501#c5044235773856618053'> 2 जनवरी 2013 को 5:05 am बजे

    विनीत जी कम से कम एक पैराग्राफ समाधान का भी हो जाए, रोग का पता, प्रकार, लक्षण, कारण इत्यादि पर व्यापक बहस हो चुकी ।

     

  10. ePandit
    http://taanabaana.blogspot.com/2013/01/blog-post.html?showComment=1357086334094#c1984280082346725874'> 2 जनवरी 2013 को 5:55 am बजे

    चारों ओर अपसंस्कृति के प्रसार के लिये फिल्म और मीडिया सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। इस सब को रोकने की चिन्ता कोई करता नहीं और बस बलात्कार जैसी घटनाओं पर स्यापा करते हैं। आखिर जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय।

     

  11. Gopesh Mishra
    http://taanabaana.blogspot.com/2013/01/blog-post.html?showComment=1357089014937#c4226873340225700792'> 2 जनवरी 2013 को 6:40 am बजे

    देर से ही सही हन्नी जैसों पर f i r हुआ । शीला- मुन्नी के समय नही हुआ जागरूकता की कमी । पर अब जगे हैं तो फिर कोई मुन्नी बच के न जा पाएं। विनीत जी एकदम सटीक कहा है किकेवल आन्दोलनों मे ही कैमरों के साथ खड़े रहने से समर्थन नहीं होगा बल्कि आपके कैमरे से किसी प्रकार कि वल्गरिटी न निकले । चाहे वह विग्यांपन हो, फिल्म हो, या कुछ भी!
    पर सारे दोष दूसरो का ही नही है हमारे भी हैं । हमें लगता है कि ये गलत है तो हम कुछ न करें बहिष्कार तो करें ।
    लेकिन इतनी तो चेतना हममें हो कि गलत सही परख सकें । किसी से नहीं खुद से कहें यार इसका बहिष्कार जरूरी है ।
    आओ जागते हैं ----------- सुप्रभात !

     

  12. वाणी गीत
    http://taanabaana.blogspot.com/2013/01/blog-post.html?showComment=1357099736830#c1044487391569109523'> 2 जनवरी 2013 को 9:38 am बजे

    सार्थक चिंतन जो सिक्के के दूसरे पहलू पर भी गौर करता है और सोचने को विवश भी !!

     

एक टिप्पणी भेजें