.


"दरिंदों की दिल्ली" जैसे स्लग और स्पेशल पैकेज चलाने के पहले न्यूज चैनल दिल्ली के बाहर बैठकर टीवी देखनेवाली लाखों मांओं और बेटी के पिता पर पढ़नेवाले असर पर के प्रति जरा भी समझ रख पाते तो वो इन पंक्तियों का विकल्प जरुर ढूंढ़ते. वो शहर को पुरुषविहीन बनाने पर ही सुरक्षित होगी स्त्री जैसी समझ से आगे निकलकर सीरियस हो पाते. ऐसा करके वो न जाने कितनी मांओं की आंखों की नींद छीनने का काम करते हैं, पति के लताड़ लगाए जाने का मौका देते हैं- कहा था, यहीं पढ़ाओ, मत भेजो लेकिन नहीं दिल्ली ही भेजेंगे पढ़ने..और भेजो और अब चिंता में रतजग्गा करो.

मेरी कई ऐसी दोस्त जो पिछले आठ साल से-दस साल से बिंदास दिल्ली का जीवन जी रही है, उनकी माएं कुछ महीनों से परेशान रहने लगी है. एक दोस्त मजाक में कहती है- मां को अब मेरी बुढ़ाउती आ जाने पर चिंता सता रही है कि मैं यहां सुरक्षित नहीं हूं. अब जबकि रेगुलर जिम जाती हूं, जरा कोई टच भी करे तो हाथ तोड़कर हाथ में दे दूंगी तब. तब वो बेफिक्र थी जब मुझे पांच किलो गैस सिलेंडर भरवाने में पांच बार सोचना पड़ता था, अक्सर दोस्तों से उधार लेती या घर से पैसे आने का इंतजार करती. तब फिटनेस सेंटर जाने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी. लेकिन

आखिर इसी दरिंदों के शहर में ( चैनल के मुताबिक) मेरी दोस्त जैसी हजारों लड़कियां ग्रेजुएट हो गई न. रोज वहशी नजरों को झेलकर इतना ताकतवर हो गई न आज कोई चूं करे तो जुबान खींचकर हाथ में धर देगी. आज से कोई तीन साल पहले न्यूज चैनल की मेरी एक दोस्त ने इसी गर्मी के मौसम में फोन किया था. उसकी पहली लाइन थी- आज पता है क्या हुआ, मैंने विश्वद्यालय मेट्रो स्टेशन पर एक ठरकी को बुरी तरह धुन दिया. स्साला, पीछे से हाथ दे दिया. जब झाड़ा तो कहा- सॉरी गलती से चला गया. मैंने टोका- गलती से चला गया..उसने कहा- गया तो गलती से ही लेकिन...लेकिन के आगे बहुत ही अश्लील बात कही थी..बस दिया वहीं पर जमाकर. भीड़ लग गयी लोगों की. उसने मुझसे किसी भी तरह की मदद नहीं मांगी. आवाज में थोड़ा कंपन था और हांफ भी रही थी. मैंने चिंता में पूछा भी था- अभी तुम कहां हो ? मैं, अभी माउनटेन ड्यू पी रही हूं, क्योंकि डर के आगे जीत है..हा हा हा..वो आज भी इसी शहर में पिछले आठ साल से बिंदास चैनल में एंकरिंग करती हुई जिंदगी जी रही है. ऐसी मेरी कई दोस्त है.

लड़की ! तुम्हें मैं कैसे यकीन दिलाउं कि दिल्ली दरिंदों का शहर नहीं है. इसी दिल्ली में तुम्हारी जैसी मेरी दर्जनों दोस्त बिंदास रहती है, अपने मन का करती है, बोलती-लिखती है. जब वो इस शहर में नई-नई आयी थी तो सहमी सी कि मुंह से वकार तक नहीं निकलते थे, उनमे से कई अभी जंतर-मंतर, आइटीओ पर धरना प्रदर्शन करती मिल जाएगी, न्यूज चैनलों में यौन हिंसा के खिलाफ न्यूज पढ़ती, स्क्रिप्ट लिखती मिल जाएगी. इस शहर ने उसे गहरा आत्मविश्वास दिया है उन्हें. ये सब उतना ही बड़ा सच है, जितना बड़ा कि अगर तुम्हारी मां मेरा ब्लॉग पढ़ लेगी, मीडिया पर लिखी मेरी पोस्टें पढ़ेगी तो कभी नहीं चाहेगी कि तुम मीडिया में जाओ. तुम्हारे पापा क्या पता तुम्हें चाहे जो कर लो पर मीडिया में न जाने की नसीहतें देंगे..लेकिन ये सब लिखने के बावजूद में रोज सैंकड़ों तुम जैसी लड़कियों को मीडिया में जाने, काम करने और बेहतर होने का पाठ पढ़ाकर आता हूं. कोई भावना में आकर नहीं, न ही सिर्फ अपनी रोजी-रोटी के लिए. इसलिए भी कि ये सच में तुम्हारी दुनिया है जिस पर हम जैसों ने कब्जा किया हुआ है, मैं खुद के लूटे जाने और तुम्हें छीनने की ट्रेनिंग देने में कामयाब हो सकूं तो सच में मुझे अच्छा लगेगा.

तुम हजार लड़कियों से मैं कभी मिला नहीं, शायद मिलना भी न हो सके. लेकिन जब कभी तुम्हारी नजर मेरी एफबी वॉल या मेरे ब्लॉग पर पड़े, उसकी कुछ अपडेट्स, पोस्टें अपनी मां को जरुर पढ़वाना. सिर्फ उन्हें यकीन दिलाने के लिए नहीं कि कुछ दोस्त भी हैं दिल्ली में मेरे, अपने लिए भी...और तुमने जो मई के बाद, बारहवीं के बाद दिल्ली से ग्रेजुएट होने का मन बनाया है न, उस पर कायम रहना. माइग्रेशन का अधिकार और मजबूरी सिर्फ लड़कों की नहीं है. तुम इसी शहर में आकर पढ़ना. तुम सिर्फ टीवी स्क्रीन पर चल रही खबरों को देखकर घबरा मत जाना. तुम्हें तो पता ही है कि टीवी सीरियल की कहानी सच नहीं होती, मेलोड्रामा होते हैं. ये चैनल मेलोड्रामा ही पैदा कर रहे हैं. यकीन करोगी, मैं अक्सर देर रात बल्कि आधी रात अपने घर से बाहर निकलता हूं और शहर के एक कोने से ठीक उलट दूसरे कोने तक जाता हूं.

 जैसे मयूर विहार से सीध करोलबाग. करोलबाग से बसंत विहार..मुझे अक्सर लड़कियां दिख जाती है जो मेरी तरह शार्ट पहनकर, बेपरवाह ऑटो में बैठी इपी लगाए एफएम सुनती हुई गुजर रही होती है. उनमे से कुछ मेरी ऑटो से रेस लगाती हुई, खुद गाड़ी ड्राइव करती हुई..ये सिर्फ क्लास तक सीमित नहीं है. इसी तरह बसों में भी, रेलवे स्टेशन पर भी. जब चैनल तुम्हारे हितैषी बनकर शहर को दरिंदा बताते हैं न तो मै महसूस करता हूं कि ऐसा बताकर वो दरअसल एक नए किस्म की दरिंदगी को बढ़ावा देते हैं जिसमे वो वेवजह उन चीजों को तार-तार करते हैं, जिसके होने से तुम यकीन के साथ जी सकती हो. वो अगर ऐसा नहीं करेंगे, घटना को टीवी सीरियल में, सोनी के एफआइआर, क्राइम पेट्रोल या सीआइडी में तब्दील नहीं करेंगे तो मनोरंजन चैनलों को पीट कैसे सकेंगे. तुम्हें तो पता ही होगा कि वो मनोरंजन चैनलों के आगे बहुत हताश होते हैं...आखिर में तुम्हें कैसे यकीन दिलाउं कि ये दिल्ली दरिंदों का शहर नहीं है. मेरे पास अक्सर इसके सुंदर,खूबसूरत और मानवीय होने के नमूने आते रहते हैं, किसी अखबार की कतरन से नहीं खुद मेरी आंखों के सामने की घटनाओं से. मैं लगातार वो सब तुमसे साझा करता रहूंगा लेकिन प्लीज तुम इस शहर की चाहे जैसी भी छवि अपने भीतर बनाओ, वो कतई न बनाओ जो चैनल दिखा-बता रहे हैं..तुम इन खबरों से चिंतित होने के बजाय इनके धंधे के प्रति थोड़ी समझ गहरी कर लेती हो तो तुम असल दरिंदों की शक्ल भी पहचान सकोगी. फिर सोचो न अगर दिल्ली दरिंदों का शहर है तो इन्हीं दरिंदों के बीच ये चैनल भी तो हैं न..जब ये मसीहा बनकर तुम्हारे सामने हाजिर हैं तो कुछ तो सच में ऐसे लोग हैं ही न जो इलइडी स्क्रीन पर इनकी तरह अपनी प्रोमो नहीं चलाते लेकिन तुम्हारे हौसले को जिंदा रखेंगे.










| edit post
4 Response to 'यकीन करो लड़की, ये सिर्फ दरिंदों की दिल्ली नहीं है'
  1. indianrj
    http://taanabaana.blogspot.com/2013/04/blog-post_23.html?showComment=1366700541326#c6566280903006715661'> 23 अप्रैल 2013 को 12:32 pm बजे

    शुक्रिया विनीतजी, अच्छा लगा. एक पुरुष की तरफ से ऐसा आश्वासन, बहुत ज़रूरी है. काश ज़्यादातर पुरुष आपकी तरह सोच पाते। हमारा देश और भी कितना खूबसूरत होता.

     

  2. shikha varshney
    http://taanabaana.blogspot.com/2013/04/blog-post_23.html?showComment=1366709268642#c3992122492211359505'> 23 अप्रैल 2013 को 2:57 pm बजे

    तुम इन खबरों से चिंतित होने के बजाय इनके धंधे के प्रति थोड़ी समझ गहरी कर लेती हो तो तुम असल दरिंदों की शक्ल भी पहचान सकोगी. फिर सोचो न अगर दिल्ली दरिंदों का शहर है तो इन्हीं दरिंदों के बीच ये चैनल भी तो हैं न..जब ये मसीहा बनकर तुम्हारे सामने हाजिर हैं तो कुछ तो सच में ऐसे लोग हैं ही न जो इलइडी स्क्रीन पर इनकी तरह अपनी प्रोमो नहीं चलाते लेकिन तुम्हारे हौसले को जिंदा रखेंगे.
    moral of the story यही है ..और इसी की सबसे ज्यादा जरुरत है.

     

  3. प्रवीण पाण्डेय
    http://taanabaana.blogspot.com/2013/04/blog-post_23.html?showComment=1366734846654#c4082281299862151992'> 23 अप्रैल 2013 को 10:04 pm बजे

    हौसला बना रहे, दरिन्दे दुम छुपा भाग जायेंगे।

     

  4. Unknown
    http://taanabaana.blogspot.com/2013/04/blog-post_23.html?showComment=1366898783636#c8698265716853146740'> 25 अप्रैल 2013 को 7:36 pm बजे

    being a man u have tried 2 encourage women and its a very appreciable step from your side to improve the self confidence of girls specially those who fears a lot after watching all these news channels.you are doing a great job Mr. vineet keep it up

     

एक टिप्पणी भेजें