.

तुम गलत इल्जाम लगा रही हो दीपिका

Posted On 12:28 pm by विनीत कुमार |



दीपिका,

बेहद तकलीफ से लिख रहा हूं. ये सही है कि हम बोतल की गर्दन पर लिखा सही दाम कभी नहीं देखते.क्यों देखें, जो गांव जाना ही नहीं है, उसका रास्ता जानकर क्या हासिल हो जाएगा ! लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि हर बखत( जब भी टीवी देखना होता है) हम तुम्हारी गर्दन ताड़ते रहते हैं. हम उन फ्रस्टुओं में से नहीं हैं कि जो पूरी दुनिया को तिल नजर आता है, हम छूकर कहें कि चींटी रेंग रही थी, सो हटा दिया. इस कुंठा को ढोकर क्या हासिल कर लेंगे ?https://www.youtube.com/watch?v=YRIJoBprqNM


ये सही है कि हमारे एक अंकल( धर्मवीर भारती ) ने एक बार लिख दिया था- इन फिरोजी होंठों पर बर्बाद मेरी जिंदगी और इसके पहिले भी हमारे बाबा लोगन नख-सिख वर्णन करके सिधार गए..लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम नई पीढ़ी के लोगों में कोई सुधार नहीं हुआ है. हम इस तरह से तुमको किराना दूकान की रैक की तरह अलग-अलग बांटकर नहीं देखते. सच कहें, यकीन करोगी..जब भी तुम स्क्रीन पर आती हो, हम बस तुम्हें देखते हैं. क्या देखते हैं, उसका आज तलक मेरे पास जवाब नहीं है. कोई पूछ देगा बता ही नहीं सकेंगे कि क्या देखते हैं ? ऐसे में तुम बार-बार बोलती हो कि गर्दन क्यों देख रहे हो तो बुरी तरह हर्ट हो जाता हूं. लगता है हम तुमसे अनुराग रखते हैं औ तुम उसे जबरिया इव टीजिंग में कन्भट करने पर तुली हो. तुम्हारी सिनेमाई भावना करोड़ो में बिक जाती है लेकिन हम भकुआए टीवी दर्शक की भावना बिकती नहीं इसका मतलब ये तो नहीं कि इसका कोई मोल नहीं है. हम अनुराग रखते हैं तो रखते हैं..इसको अलग से बेगरिआने( गिनने) की कभी जरूरत महसूस नहीं हुई.

हम साहित्य का छात्र रहा हूं. एक से एक माटसा मिले जो लड़की के शरीर के एक-एक अंग की उपमाओं की थोक भाव में सप्लाय करते थे. व्यावहारिक जीवन में किसी की आंख बताते हिरणी जैसी, किसी की चाल..लेकिन कम्प्लीट किसी को सुंदर नहीं बताते..हम भुचकुलवा सब पूरा बीए-एम में इसी तरह अलगे-अलगे सबका ब्यूटी खोजने में खेप दिए..लगा नेहरु प्लेस की तरह सैमसंग की मॉनिटर, आइबीएम की सीपीयू, लॉजिटेग की माउस और टीवीएस की कीबोर्ड एस्बेंल करके पीसी बना लेंगे. हम गलत थे. ऐसा अनुराग में थोड़े ही न होता है.

तुम नई-नई सिनेमा में आयी औ एकदम से भांग के माफिक कपार पर चढ़ गई..अब कोई तुम्हारा रंग दबा हुआ कहके उतार दे, सिनेमा में रोल थर्ड क्लास बताके उतार दे, असंभव है..तुमको देखे तो पहली बार उ खंडित-खंडित सौन्दर्य का कॉन्सेप्ट दिमाग से निकला और लगा नहीं..शारीरिक अंगों के अलावा उसकी चेष्टाएं भी सौन्दर्य पैदा करती है..ऐसे में हमारे बाबा-अंकल जो शारीरिक सौष्ठव के जो प्रतिमान बनाके सिधारे, उ सब नहीं भी है तो भी सौन्दर्य संभव है बल्कि और मजबूती से. उसी को आजकल गेस्चर,ऑरा, अपीयरेंस सब बोला जाता है..तो हम तुममे सबसे ज्यादा गौर से देखे एनर्जेटिक अपीयरेंस. ऐसा लड़की जो तार-तार मिजाज को भी सितार बना दे औ फी मन करे तो खुदै ही तार छेड़ो नहीं तो इ कुछ न कुछ ऐसा बोल जाएगा कि अपने आप भीतर कोमल स्वर और वर्जित स्वर का विभाजन होके राग मालकोश बजने लगा. इ कोकवाला विज्ञापन में भी ऐसा ही हुआ है.

तु हमको उपर लाख गर्दन ताड़ने का आरोप लगावो, हट्ट तो हुए ही हैं बुरी तरह औ ज्यादा इस बात से भी कि जो इव टीजिंग का घिनौना काम हम कर ही नहीं रहे हैं, उ इललेम हम पर लगा रही हो और इ बात पर भी कि हम क्या सोचके तुमको औ तुम क्या अलाय-बलाय सोचती हो..हम सपने में भी तुमको लेके ऐसा नहीं सोच सकते हैं..देखेंगे तो ऐसे कोना-भुजड़ी( टुकड़ों-टुकड़ों में) करके तुम्हारा सिरिफ गर्दन.. तुम्हारा टीवी स्क्रीन पर होना छह सौ पचास एमजी का क्रोसिन होना है जो असल जिंदगी का बोखार उतारकर राहत देता है. तुम्हारा होना सौन्दर्य होना है..बाकी सब मचउअल्ल मामला है.

इ एगो चरन्नी सीसी के चक्कर में कहां अपनी गर्दन टिकाकर रूपक अलंकार के बखेड़ा में पड़ गयी..अब इ सब कुच्छो नहीं देखते हैं..पैसा-कौड़ी से कुछ लेना-देना है हमको..न तुमसे हाथ मिलाना है औ न अजय सर( Ajay Brahmatmaj) की तरह सटके फेटू घिचाना है. हमको बस तुमको उस बबली-जबली अंदाज में बस देखते रहना है औ उ भी शारीरिक रूप में नहीं, आंगिक चेष्टाओं के रूप में.

सच बोले, हमको कोक-शोक पीते नहीं हैं औ अबकी लगाके 122 बार बोल चुकी को बोतल की गर्दन पर दाम देखने लेकिन तब्बभी हम उ सब कुछ नहीं देखके एक ही बात का इंतजार में इ विज्ञपन देखते हैं- पागल नहीं तो.. इहै एक लाइन पूरा जान ला देता है विज्ञापन में. नहीं तो पैसा फूंक के नाला के पानी के रंग का इ कोढ़ा-कपार किसको पीना रहता है. संभव हो सके तो इ गर्दन ताड़े-बाला बात कहके मालिक से हटवा दो न, वेवजह का अपने उपर इल्जाम जैसा लगता है. एगो बात औ रह ग गया. हियां दिल्ली में पियास से मार गला रेगिस्तान हो गया है औ तुम हुआं बम्बै में बैठके पहिले अपने हड़हड़ाके कोक पीती हो औ फिर डांटने दबारने लग जाती हो. बिना पिए भी तो सब बात बोल सकती हो या फिर सिर्फ पीकर औ बिना कुछ बोले भी तो कोक बेच सकती हो. इ भी देख लेना तनी.
तुम्हारा
मीसिकंस( मीडिया सिलेबस कंटेंट सप्लायर)
| edit post
1 Response to 'तुम गलत इल्जाम लगा रही हो दीपिका'
  1. dr.mahendrag
    http://taanabaana.blogspot.com/2014/05/blog-post_26.html?showComment=1401194958263#c363461229287219821'> 27 मई 2014 को 6:19 pm बजे

    खूब विनीतजी , ठीक खिंचाई कर दी आपने दीपिका की

     

एक टिप्पणी भेजें