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अम्मा आपको बहुत दुआएं देतीं हैं भैया,बहुत याद करती हैं..फिर जल्दी आना मिलने लखनऊ..
रुबीना दीदी ने फोन पर जब इतना कहा तो अपने आप आखों में आंसू छलक आए..फफककर रो पड़ा.

ज़रीना बेगम ये नास्तिक आपके लिए प्रार्थना भी नहीं कर सकता. वो पहली मुलाकात में बस आपको एकटक देखता रहा..चेहरे की झुर्रियों में आपकी ठुमरी,रियाज़ और बेगम अख़्तर का अक्स पढ़ता रहा. आप कितना कुछ बोलना चाहती थीं हमसे लेकिन बेबस नज़र आयीं..आपके लड़के ने हमें बताया- अम्मा के आगे अभी तबला-हारमोनियम देय दो तो गाने लग जांगी...फिर कहने लगे,अम्मा ठीके थीं,जब पता पड़ा कि बिजली बिल जमा नहीं करने पर ये घर नीलाम हो जागा तो चिंता में घुलने लगीं.
ज़रीना बेगम,हमें नहीं पता है कि लेखक के,कलाकार के सम्मान में,उसके संघर्ष की आत्मा से गुजरते हुए उनकी कैसे मदद की जाती है..कई बार हम भावुक होकर उलटा उन्हें ठेस पहुंचाकर आ जाते हैं..उस वक़्त भी मेरे मुंह से अनायास निकल गया- तो आप इनकी नज़र के सामने तबला,हारमोनियम और गायन से जुडी चीजें क्यों नहीं रखते? इन्हें अच्छा लगेगा. बाद में अपने प्रति ही हिकारत हुई. एक बार फिर..
आपके कमरे,दीवारों पर टंगी चीजें और आहाते के एक हिस्से को रसोई की शक्ल देने की कोशिश पर नज़र गयी. अखिलेश यादव ने आपको जिस सम्मान से नवाज़ा है, वो भी उसी थैले में खूंटी पर टंगी है. आप पर की गयी तहलका,ओपन,एक्सप्रेस और तमाम मैगज़ीन-अखबारों की रिपोर्ट,बेगम अख़्तर के साथ की आपकी तस्वीरें,भारतीय संस्कृति परिषद् का सम्मान-पत्र,एक-एक करके दीदी ऐसे निकाल रहीं थीं जैसे मेरी माँ बॉक्स पलंग से आज से पचास साल पहले नाना की तरफ से दिए कांसा-पीतल के बर्तन दिखाती हैं.
आपके हिस्से जो भी है,सब अतीत है..सुख के सारे क्षण उसी में सिमट गए गए हैं. आपके वर्तमान में कितनी वेदना है,तड़प है अजीना बेगम. दुनिया आपके गायन को,ठुमरी को,बेगम अख्तर की आखिरी शिष्या की आवाज़ बताकर करोड़पति बन गए..एकाध को छोड़कर किसी ने पलटकर देखा तक नहीं..फिर भी आपको किसी से कोई शिकायत नहीं है. 

शिकायत है तो उस जुनूनी हिमांशु( Himamshu Bajpayee से जो बहुत कम शब्दों में अपना परिचय लखनऊ का आशिक बताकर करता है. आपको लगता है वो आपसे शायद नाराज़ है सो मिलने नहीं आया कई दिनों से. उससे कोई शिकायत नहीं जो आपसे सीखने,इंटरव्यू करने एक कलाकार की हैसियत से,पत्रकार की हैसियत से आए लेकिन आदमी बनकर कभी लौटे नहीं.
आपसे मुलाकात के बाद मुझे बेचैनी थी सीधे अपने कमरे में जाने की जिससे कि मैं दरवाजा बंद करके जी भरकर रो सकूँ..मेरा मन था विधान सभा के आगे जाकर जोर से चिल्लाकर कहने की- अखिलेश साहब, आपको याद है आपने कभी बेगम अख्तर के सम्मान में लाखों रूपये खर्च करके कार्यक्रम कराया था,बड़ी मुश्किल से उनकी आखिरी शिष्या आयीं थी सम्मान लेने? कभी पलटकर आपके कारिंदों ने सुध भी ली.
मतदाता आप जैसे को मंत्री,विधायक बनाते हैं और कलाकार के जरिए आपकी सरकार खुद को ब्रांड लेकिन इन कलाकारों का,मतदाता का क्या होता है,कभी तो पीछे मुड़कर देखिये...
लखनऊ के वाशिंदे,आपने तीन दिनों में मेरे ऊपर जितना प्यार लुटाया,आपसे बड़ी उम्मीद बंधी है..लिखते हुए लग रहा है- आप निराश नहीं करेंगे. आपकी, हमारी ज़रीना बेगम की हालत बेहद खराब है. वो के के हॉस्पिटल,(नबीउल्लाह रोड,लखनऊ सिटी स्टेशन) की इमरजेंसी वार्ड में भर्ती है. आप एक बार उस परिवार से मिलें, उनके साथ हों,डेढ़ घंटे की मुलाकात के भरोसे मैं कह सकता हूँ, बहुत ही खुद्दार लोग हैं ये. कभी इन्हें शिकायत नहीं रही कि उत्तर प्रदेश के कई मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री रह चुकी शख्सियत से व्यक्तिगत पहचान रही है ज़रीना बेगम की,कभी कुछ करने को नहीं कहा.लेकिन
इस वक़्त उन्हें कई स्तर पर ज़रूरत है..आप आगे आएं..आप साथ नहीं होंगे तो तो इनकी आवाज़ ताउम्र आपके बीच एक कचोट बनकर मौज़ूद रहेंगी बस..
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